अरे! रुको उपहास मत करो,
उस नंगे तरुवर का
संरक्षण है प्राप्त अभी भी,
उसे धरा - अम्बर का॥
दिन उसने भी देखें हैं,
मस्ती और अंगड़ाई के
पास नहीं आया है कोई,
देख के दिन तन्हाई के
पशु पक्षी कलरव करते थे उसकी शीतल
छाया में
पथिक शान्ति अनुभव करते थे घने वृक्ष
की माया में
जिसके पुष्पों के कारण ही पवन
सुगन्धित रहती थी
जिसके फलों के कारण ही,
कोयल आनंदित रहती थी
थे मधुपों के बोल कभी ये,
'है पराग तो मात्र यहीं है'
नहीं शिकायत आज इसे जबकि पास कोई भी
नहीं है
हे बुद्धिमान नर! देखो संयम उस महान
तरुवर का॥
संरक्षण है प्राप्त अभी भी,
उसे धरा - अम्बर का॥
पत्र-पूर्ति यदि कर न सके तो,
पत्र-हीन पर हँसे नहीं
विष की औषधि दे न सके तो विषधर बन कर
डसें नहीं
बुरा समय है आया उस पर,
यह मौसम है पतझड़ का
समय चक्र तो कभी रुका न,
यही नियम चेतन-जड़ का
वही बहारें फिर आयेंगी,
नव किसलय होंगे तन में
पशु,पक्षी,पथिक,पवन,
भौंरे फिर होंगे उसके जीवन में
नवजीवन के लिए व्यग्र हैं उसकी टहनी
और शाखाएँ
आशीर्वाद उसे 'जय'
दे दो, 'पूरी हों
तेरी आशाएं'
दो मधुर शब्द से ही कर दो,
उपकार खड़े उस तरुवर का॥
अरे! रुको उपहास मत करो,
उस नंगे तरुवर का ॥
संरक्षण है प्राप्त अभी भी,
उसे धरा - अम्बर का॥
No comments:
Post a Comment