(१)
तुम कभी अपने को कमतर क्यों कहो
समय के अनुसार सुख-दुःख सब सहो
दृष्टि ऊँची रख कर , सीना तान कर
मुस्कुरा कर पथ पे निशदिन 'जय'बढ़ो
(२)
हाँ, सफलता आज संभव ना हो क्वचित
किन्तु प्रियवर, तुम ना होना दिग्भ्रमित
पत्थरों को तोड़कर नदियाँ निकलती हैं
स्वर्ग से गंगा को लाये 'जय' भगीरथ ||
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