Saturday, October 27, 2018

सच्ची में ..

27-10-2018
आज सौभाग्य-पर्व के उपलक्ष्य पर

सच्ची में ..


आज आप बहुत याद आ रहे हैं ..

यूँ तो हम प्रतिदिन बात करते हैं
घण्टों मोबाइल से 
पर आज की बात कुछ अलग है
सच्ची में ..

आप दिलासा देते हैं मुझे हर त्योहार

घर आने की और हर बार
कोई न कोई अड़चन 
सामने आ जाती और ठिठक जाते हैं 
पैर आपके वहीं पर ...
मेरी आशाओं को कुचल कर
सच्ची में ...

सामाजिक सम्बंधों को निभाते हुए

दिन तो व्यतीत हो जाता है किंतु ..
रात .. रात जिसपे आपका है अधिकार
वह रात .. जो आपके साथ होने पर
शरमाती है, सहमती है, सिसकती है
वही आज मुँह चिढ़ाती है मेरा बार बार
बोलती है, 'क्या यही है तुम्हारा प्यार'
सच्ची में ..

ढलता हुआ चन्द्रमा और खिलता हुआ सूरज

फुसफुसाते रहते हैं प्रायः मुझे देख कर
मैं जानती हूँ कि हँसेगा आज का चंद्र मुझ पर 
साथी सितारे लगाएंगे ठहाके और
आज व्योम में मेरे उपहास का होगा निनाद 
मेरी प्रबल अभिलाषा है 'जय' 
कि साक्षात सामने आकर आप
तिरोहित कर दें ढीठ चन्द्र का उपहास
सच्ची में ..

कभी कभी मैं सोचती हूँ

हाँ .. कभी कभी ही सोचती हूँ
ऐसे ही किसी अवसर पर कि
क्या डॉलर और दीनार ही 
उपलब्धि हैं हमारे वैवाहिक जीवन की !
क्या पैसे की चमक के आगे ..
मेरे यौवन की कांति कुछ भी नहीं !!
दहकते तन में ज्वालामुखी बनी भावनाओं
के लिए क्या मोबाइल ही समाधान है !!!
डर लगता है कभी कभी
सच्ची में ...