kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Sunday, October 20, 2013
हृदय-कलश जब छलकेगा
हृदय-कलश जब छलकेगा,
तो नयनों से नीर बहेगा ही
मन - अन्तर जब दहकेगा,
तो जिह्वा से तीर चलेगा ही
क्रोध,वियोग,प्रेम और पीड़ा,
चित्त को 'जय' बहकाते हैं
क्षमा,त्याग और दया संग हों,
तब
मन तो धीर धरेगा ही
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