चलो उड़ें उन्मुक्त भुवन में, जहाँ कहीं न कोई डर है।
नीचे हरियाली धरती है,ऊपर विस्तृत नीलाम्बर है॥
साँझ जहाँ जिस डाल पे डालें, अपना कोई बसेरा
आकर उसे छीनता दूजा, जब भी हुआ सबेरा
वर्ष महीने हफ्ते दिन भर, करते जिसपे श्रम हैं
नहीं जान पाते हैं हम कि पल भर का यह डेरा
यहाँ न कोई अपना साथी, यहाँ न कोई अपना घर है॥
नीचे हरियाली धरती है,ऊपर विस्तृत नीलाम्बर है॥
दाना दाना लगे जुटाने, आती जब प्रथम किरण है
फिर भाई भाई मर मिटते उस हिस्से के कारण हैं
नहीं मनुजता रह जाती, अपना ही कहते कहते
और समझ ना पाते कि यहाँ ईश्वर का हर कण है
हर वस्तु यहीं रह जानी है और मृत्य सभी के सर है॥
नीचे हरियाली धरती है, ऊपर विस्तृत नीलाम्बर है॥
माता-पिता-बहन-भाई, संबन्धी, पुत्र व दारा
स्वार्थवश ही प्रीति सभी की, आगे के न सहारा
जो कोई यह सोच के चलता, यह अपना न पराया
उसी के जीवन को ईश्वर 'जय' हाथ बढ़ा के सँवारा
उसी का जीवन अर्थवान है, उसी का न नाम अमर है॥
नीचे हरियाली धरती है, ऊपर विस्तृत नीलाम्बर है॥
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