हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।
क्या मिला..
कूल जिसके विरह व दुःख
आँसुओं की वह नदी हो।।1।।
पय भरा हो वक्ष में
पर गोद में हो सूनापन..
जो बरसने को हो आतुर
श्यामा बदली एक घनी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।2।।
क्या मिला..
जिसके उपवन लालसा के
जल गए हों फूलते ही,
युवा तन की चाहना जिसे
याचना में ना मिली हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।3।।
क्या मिला..
तप्त सूरज की किरण सा
दग्ध कर सकती भुवन को,
नन्हीं सी वो वह्निका जो
भस्म में किंचित छुपी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।4।।
क्या मिला..
लोष्ठवत जिसके लिए है
जगत जी धन-सम्पदा सब,
शुभ्रवसना, बिन आभूषण
गरिमामयी पटरानी सी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।5।।
क्या मिला..
हास और परिहास करती
रिक्तता की देवी जो
उन्मुक्त हो कर हँस सके ना
ऐसी एक निश्छल हँसी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।6।।
क्या मिला..
तुम सृष्टि की हो विडम्बना
या कोई अभिशप्त पत्थर!
राम-पद की लालसा में
जो अहिल्या सी पड़ी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।7।।
क्या मिला..
प्रकृति का पर्याय बन कर
रति का जो प्रतिबिम्ब है,
अलि प्रतीक्षा में नयन हों
ऐसी एक कुसुमित कली हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।8।।
क्या मिला..
दिव्या हो तुम साधिका सी
नामवाली अनामिका हो
तुम धरा सी सौम्या हो
धैर्य रूपी सरला सी हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।9।।
क्या मिला..
मन मयूरा चाहकर भी
जिसका नर्तन कर सका ना,
दीपिका की वर्तिका सी
'जय' शिवालय में जली हो।
हो एकाकी
जब स्वयं को खोजती हो।।10।।
क्या मिला..
वह्निका - चिंगारी
लोष्ठवत - मिट्टी के ढेले के समान
अलि - भ्रमर, प्रियतम, पति
वर्तिका - रुई की बाती