Tuesday, November 30, 2010

अपना क्वांरापन

घोर अमावस की रातें थी जब मैं क्वाँरा था
भटक रहा था इधर उधर, ना प्रेम सहारा था
दूज के चाँद सा जीवन हो गया जब तुम मुझे मिली
रोम रोम हो गया बगीचा जब हृदय में कलियाँ खिली
पूनम का चन्दा बन कर तुम मेरे घर आयीं
जीवन का मिट गया अँधेरा शुभ्र चाँदनी लायीं
बरस दो बरस बीत न पाए, पड़ गया चाँद ग्रहण
पल पल याद आ रहा अब, 'जय' अपना क्वांरापन

Wednesday, November 10, 2010

अमरता

तरलता में सरलता है
सरलता में गहनता है
गहनता ज्ञान का द्योतक
ज्ञान ही से सफलता है
सफलता का नहीं मतलब
कि धनी होकर विलासी हों
बने जन-मन के अधिनायक
इसी में 'जय' अमरता है //