आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में
दुबकी सी
इच्छाएं देखी, लम्बे चौड़े चौबारे में
सहमे - सहमे खेत सभी हैं, ठिठक रहे खलिहान हमारे
बाग़ - बगीचे रुदन कर रहे, सिकुड़ -सिमट अँधियारे में
सिसक रही वह जगह जहाँ पर कभी पेड़
था दाड़िम का
उपहासित हो रहा आज वह , तुलसी - चौरा आँगन का
चौपाये सब देख रहे है , घर के बंद किवाड़ों को
उल्टी पडी
दुधाडी रोये , बुझे -
बुझे दुधियारे में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में
उठने लगी
दीवारें अब तो घर के आँगन - कमरों में
तेरा मेरा
बन कर के बँट रहा बरोठा टुकड़ों में
दादी - अम्मा की खटिया अब , दरवाजे बाहर पडी हुयी
चरही ऊपर
बनी घडौची , चूल्हा है भुसियारे
में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में
बच्चों पर प्रतिबन्ध लगा है,इधर न जाना,उधर न जाना
बेचारे वे उलझ गए हैं, क्यों न जाना, किधर ना जाना
बच्चे तो बच्चे हैं 'जय' , क्यों न बड़ों की समझ में आये
अलग रहे
तो टूट जायेंगे, ताकत है सझियारे में
आज हमें कुछ स्वप्न दिखे हैं, अपनी देहरी गलियारे में
(देहरी=दहलीज; चौबारा=छज्जा(बालकनी); दाड़िम=अनार; दुधाडी=दूध की हाँडी; दुधियारा=वह स्थान जहां पर उपले जला कर ढूध की हाँडी रखी जाती थी; बरोठा=बरामदा; चरही=जानवरों को चारा खिलाने का स्थायी स्थान; घडौची=पानी भरे घड़े/बाल्टी आदि
रखने का स्थान; भुसियारा= भूसा रखने की कोठरी; सझियारा=एकता)
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