जब कभी मैं पलटता हूँ अतीत के पन्ने
कुछ रंग बिरंगी कुछ मटमैली स्मृतियाँ उभर आती हैं
उन्हें देख कर कभी हँसता हूँ
कभी चौंकता हूँ तो सिहर जाता हूँ कभी
कोरी कल्पनाओं की उड़ाने बहुत भाती हैं
जब कभी मैं पलटता हूँ अतीत के पन्ने
जिनमे मुक्त हास्य और दुखद अनुभव छपे होते हैं
की गयी भूलों का प्रायश्चित नज़र आता है
कुछ ऐसे कार्य भी हैं जो छोटे बड़े धब्बों को धोते हैं
भीनी भीनी यादों में मन खोया खोया रहता है
अपनी लम्बी लम्बी बाजुओं से
इसे जोर से जकड़ लेती हैं
बेबस सा मन बुझी बुझी आँखों से
देखता ही रहता है और उसे तड़पने के लिए
अपनी ओर आकर्षित सा कर लेती हैं
फिर जान नहीं पाता हूँ कि मन भाव शून्य हो गया कब
और बंद हो गये कब अतीत के वे पन्ने ...
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