वो हुस्न भी क्या हुस्न था जो पर्दा दर पर्दा रहा
पैर का तलवा दिखा तो हुस्न का जलवा कहा
गर शरारत से हवा की, हट गया थोड़ा नकाब
शायरों और आशिकों ने जीने का अरमां कहा
परदे में उस हुस्न के कुछ भी बनावट थी नहीं
वक्त बदला सोच बदली,अब हुस्न है पर चिपचिपा
दो गिरह का कपड़ा देखो अब हटा कि तब हटा
बिकनी 'जय' बाज़ार में जब बिकनी को पहना दिया
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीय ||
नवरात्रि की शुभकामनायें-
आपका अभिनन्दन है रविकरजी। आभार।
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