Saturday, October 5, 2013




वो हुस्न भी क्या हुस्न था जो पर्दा दर पर्दा रहा
पैर का तलवा दिखा तो हुस्न का जलवा कहा


गर शरारत से हवा की, हट गया थोड़ा नकाब
शायरों और आशिकों ने जीने का अरमां कहा


परदे में उस हुस्न के कुछ भी बनावट थी नहीं
वक्त बदला सोच बदली,अब हुस्न है पर चिपचिपा


दो गिरह का कपड़ा देखो अब हटा कि तब हटा
बिकनी 'जय' बाज़ार में जब बिकनी को पहना दिया

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति
    शुभकामनायें आदरणीय ||
    नवरात्रि की शुभकामनायें-

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    1. आपका अभिनन्दन है रविकरजी। आभार।

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