तुम जब भी मिली, हमने तुम्हे गौर से देखा
ये और बात है कि, तुमने और को देखा
तुम मुस्कुरा रही थी किसी गैर के संग में
फिर भी हमारे होंठों खिंची गोल सी रेखा
हमने हमारे हाथों को आतिश में जलाया
जब भी कभी हमने तुम्हे रोता हुआ देखा
तुम जब भी शरारत से,दुपट्टे को गिराओ
दिल धक् से करे मुड के देखूँ किसने है देखा
मैं हफ़्तों चाहे तुमको ,कभी देख न पाऊँ
ख़्वाबों में मगर तुमको मैंने रोज है देखा
पहलू में मेरे होती हो पर दूर बहुत हो
रातों में बंद आँखों में सौ बार है देखा
बाहों में भर लिया है, उसी पेड़ को 'जय' ने
तुमको गले लगाते जिसकी ओट से देखा
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