Monday, May 7, 2018

पूरक


लहरों से  सजे  सागर का मुख, बदली से  निखरता है सावन
चन्दा से सजता नील गगन, कलियों  से  सजे प्यारा उपवन
यौवन से निखरती है तरुणी,  चंचल  होती है गति  से पवन
दु:खों से मन धरती बनता, वनस्पतियों से 'जय' जल पावन

Wednesday, May 2, 2018

पिछले 80 दिनों की उपलब्धि



नाहक गर्व स्वयं पर करिये, सबल तो समय-परिंदा है
परोपकर से बड़ी खुशी नहिं, दुःख वृहद पर - निंदा है
मेरे संग परिवार खड़ा है, जीवन के इस काल-खंड में
मरा नहीं है अभी भी मित्रों! मत भूलो, 'जय' ज़िंदा है

Tuesday, May 1, 2018

ज़हर

ज़िन्दगी भर इसे पीते, होता न असर देखो
कभी तोला, कभी लोटा, कभी तीनों पहर देखो
अगर रुसवा ये हो जाये, जरा सी बूँद से ही 'जय'
हमारी जान ले लेता, बड़ा बेदर्द ज़हर देखो

सपने

सपने सुहाने देखो और  आँखों में  बसाओ तुम
इन्हें साकार करने का साहस  भी दिखाओ तुम
पंजों के बल खड़े होकर हाथों को उठाओ 'जय'
गगन से तोड़ के इनको कदमों पर बिछाओ तुम