विटपों से सूखे पात गिरे ॥
दौलत से रिश्ते-नात घिरे॥
हृदयंतर 'जय' अस्तव्यस्त,
हरपल मावस सी रात घिरे॥
कब सुबह सुहानी आयेगी
कब मादक वायु बहायेगी
प्रकृति निठल्ली चुप है क्यों
हैं निशि-वासर गूंगे बहरे॥
क्यों श्वास रन्ध्र सहमे सहमे
क्यों रक्त प्रवाह नहीं वश में
क्यों ऊर्जा क्षीण लगे प्रतिपल
हृदय के कम्पन ठहरे ठहरे॥
विटपों से सूखे पात गिरे ॥
दौलत से रिश्ते-नात घिरे॥
हृदयंतर 'जय' अस्तव्यस्त,
हरपल मावस सी रात घिरे॥
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