Tuesday, October 8, 2013

प्रकृति निठल्ली



विटपों से सूखे पात गिरे ॥ 
दौलत से रिश्ते-नात घिरे॥ 
हृदयंतर 'जय' अस्तव्यस्त,
हरपल मावस सी रात घिरे॥

कब सुबह सुहानी आयेगी 
कब मादक वायु बहायेगी
प्रकृति निठल्ली चुप है क्यों
हैं निशि-वासर गूंगे बहरे॥ 

क्यों श्वास रन्ध्र सहमे सहमे 
क्यों रक्त प्रवाह नहीं वश में 
क्यों ऊर्जा क्षीण लगे प्रतिपल 
हृदय के कम्पन ठहरे ठहरे॥ 

विटपों से सूखे पात गिरे ॥ 
दौलत से रिश्ते-नात घिरे॥ 
हृदयंतर 'जय' अस्तव्यस्त,
हरपल मावस सी रात घिरे॥

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