kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Sunday, October 20, 2013
विडम्बना
अब गगन में घन हैं,
लेकिन
वे सजल दिखते नहीं
हैं अवनि में वृक्ष कोटिश,
पर वे सघन दिखते नहीं
है उदर परिपूर्ण लेकिन,
क्यों क्षुधित रहता है 'जय'
सिंधु में है जल असीमित,
पर पूर्णतन दिखते नहीं
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