जिंदगी के साज़ में
आवाज अब बाकी नहीं
देख डाले पहलू
सारे, राज अब
बाकी नहीं
मय है, सागर साकी
है, साथ ही
हैं महफ़िलें
मयकशी का वो हसीं
अंदाज़ अब बाकी नहीं
हर जुबां में इस
शहर के जब्र का ही है हवाला
खिलखिलाहट का कहीं
आगाज़ अब बाकी नहीं
अब कहाँ वो हुस्न
है, अब कहाँ
वो जुल्फेखम
मरमरी बुत हैं सभी, वो नाज़ अब
बाकी नहीं
आम मजलिस अब नहीं, ख़ास मजलिस
भी नहीं
तख़्त पर बेबस
शहंशह, ताज 'जय' बाकी
नहीं
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