Friday, October 25, 2013

रेत से एहसास


फिर उभरे हैं रेत से सरकते एहसास  ॥ 

हाँ, ये वही तो था जो धूमकेतु की तरह आया 
बढ़ती जलधारा की तरह हमारे रिक्त हृदय में समाया 
मुझे लगा कि कोई है जो सुखद राह दिखलाएगा 
फिर बंद हुए दरवाजे जिसके लिए ...
........................... मुझे लगा वह आयेगा 
बंद द्वार से मैं देख रहा था उसी को अभी तक 
मैं अकेला हूँ, अकेला ही रहूँगा अब कई सदी तक
मैं हूँ सब जगह, कोई नहीं है मेरे आसपास ॥ 
फिर उभरे हैं रेत से सरकते एहसास  ॥ 

मेरे मनो-मस्तिष्क को जिसने पढ़ा .... वही तो था 
मैं बाँटा बहुत कुछ अपना जिससे ....... वही तो था 
तब मुझे लगा था अकेला नहीं हूँ कोई मेरे साथ है 
मेरे कंधे से उसका कंधा, मेरे हाथों में उसका हाथ है 
मैं हतभाग्य! कुछ कदम ही चल पाया कि एकाकी हो गया 
हासिल न हुआ कुछ भी, सब कुछ बाकी हो गया 
लगा कि मेरे ऊपर से हट गया है आकाश  ॥ 
फिर उभरे हैं रेत से सरकते एहसास  ॥

हाँ, वही तो था जिसके माथे पर मैंने तिलक लगाया था 
हाँ, वही तो था जिसको मैंने अपने गले से लगाया था 
मैं मान बैठा था कि वह है मेरा दूर तक का साथी 
हवा के एक झोंके में रह गयी है धुआँ छोडती हुयी बाती 
कीकरों की छाँव में 'जय' तुझे अब चलना ही होगा 
छद्म छाया के भरोसे, तुझे काँटों से बचना ही होगा 
रुधिर, आँसू, स्वेद, पीड़ा, कठिन-पथ, उच्छ्वास ॥ 
फिर उभरे हैं रेत से सरकते एहसास  ॥




चित्र सौजन्य : गूगल 

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