kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Thursday, October 24, 2013
प्रेम का परिदान
प्रेम-नभ पर उडती है ये
,
प्रणय-पथ पर झूलती है
रतिबद्ध हो काया निगोड़ी
,
हर कला को भूलती है
कैसा अनोखा दान यह या
,
प्रेम का परिदान
'
जय
'
नवसृजन के अंकुरण की
गरिमा से
फल-फूलती है
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