तुम सुखद सुबह, मैं श्रांत साँझ,
तुम शीतल जल मैं निर्झर
हूँ ।
तुम वृहद् काव्य, मैं एक गीत,
तुम झनन झनन मैं झाँझर
हूँ॥
मैं नदी का तट तो लहर हो
तुम,
मैं एक पथिक तो डगर हो तुम
मैं बन्द कपाट तो घर हो
तुम
तुम शांत निशा मैं बासर
हूँ ॥
मैं तरुवर हूँ तुम
पुष्पलता
कवि हूँ मैं तो तुम
कविता
मैं नीलगगन तो तुम चन्दा
फूल हो तुम, मैं पाथर हूँ ॥
तुम सारथी हो मैं स्यंदन
हूँ
श्वास हो तुम मैं जीवन हूँ
तुम एक उमंग तो मैं मन हूँ
तुम आँखे हो मैं काजर हूँ
॥
तुम मधुर छंद मैं गायक हूँ
तुम गीता हो मैं वाचक हूँ
तुम ज्योति हो मैं दीपक
हूँ
तुम सरिता हो मैं सागर
हूँ ॥
तुम देवी हो मैं मंदिर हूँ
तुम बदली हो मैं अम्बर हूँ
तुम दयावती मैं निष्ठुर
हूँ
सुधा हो तुम, 'जय' गागर हूँ॥
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