हमारे घर के बाजू में, तुम्हारा घर अगर होता ।
तुम्हारा घर ना घर रहता, हमारा घर ना घर होता ॥
हमारे घर जो होते तो, दर-ओ-दीवार ना होते
छतों से चांदनी आती, समाँ भी पुरअसर होता ॥
किसी के भी बुलाने पर, किवाड़ो तक ना जाते हम
मकाँ के हर सिरे से वह, हमें साबुत नज़र होता ॥
जहाँ पर बैठ जाते हम, वहीं सब काम हो जाते
खाना भी नहाना भी, व दरबार-ए-सदर होता ॥
हमें ताले व चाभी की, कभी चिंता नहीं होती
मरम्मत रंग-रोगन के, खर्चों का न डर होता ॥
हमें तुमसे जो मिलना हो, तो अन्दर से ही मिल लेते
गले मिलने के दरम्याँ 'जय',खिसकने का सफ़र होता ॥
चित्र सौजन्य : गूगल
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