अब भी मनुज में नीर है, स्वाभिमान है
क्यों कहने लगे हैं लोग, कि बे-ईमान है
अब भी धरणि में हैं चराचर जीव इतने
फिर भी सभी में श्रेष्ठ यह इंसान है
हम में उफनती भावनाएँ इस कदर
हम खोजते पत्थर में भी भगवान् हैं
यदपि मनुज ने मारे हैं चौपाये नभचर
हमने इन्हें पाला, दिया सम्मान है
जिनमे भरा है जंगलों का जीव 'जय'
वे नर - रूप हो कर भी नहीं इंसान है
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