मन की अभिलाषाओं में अब,
कुसुमाकर का वास हो चला
फूलों पर हर पग है मेरा,
मुट्ठी में आकाश हो चला ॥१॥
आँखों में मदिरा छलकी है,
बाहों में अभिमान आ गया
रोम रोम में वीणा गुंजित,
हृदय में मादक गान आ गया ॥२॥
मधुमिश्रित वह समय भी आया,
मधुर मिलन के जो पल थे
मैं प्रियतम की बाहों में हूँ,
गंगा जमुना ज्यों संगम में ॥३॥
दहक उठे हैं तन मन दोनों,
मद-पूरित निज उच्छ्वास से
देह-धार बह चली नदी सी,
प्रथम पुरुष के अंक-पाश में ॥४॥
काया की कलिका चटकी तो,
मुदित भ्रमर का नर्तन देखा
कायिक-पराग के कर्षण में,
नख-शिख तक स्पंदन देखा ॥५॥
मदनगन्ध प्रस्फुटित हुयी तो,
तन-अंतर हो गया सुवासित
अपमानित और तिरोहित तन को,
आज मिला सम्मान असीमित ॥६॥
निशा बीतती पलक झपकते,
ज्यों मेघ-तड़ित अनुराग रहे
हे प्रभु! मेरी विनती सुन लो,
मेरा अमर सुहाग रहे ॥७॥
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सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteनवरात्रि की मंगल कामनाएं आदरणीय-
उर में मादक गान आ गया-
सुन्दर मन के भाव अति, सधे सधाए वर्ण |
Deleteसुनकर के संतृप्त हुवे,, परिणीता के कर्ण |
परिणीता के कर्ण, युगल को बहुत बधाई |
शुद्ध समर्पण देख, ख़ुशी घर आँगन छाई |
ठुमुक ठुमुक शिशु देख, खिले रविकर का अन्तर |
यही आज आशीष, बने जीवन यह सुन्दर ||
सुन्दर और सारगर्भित टिप्पणी के लिए हृदय से आभार रविकर जी।
Deleteआपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लिए बढ़िया रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
हार्दिक आभार बन्धु ।
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