Monday, April 23, 2018

दृढ़ निश्चय

भानु के शोलों से तपते पत्थरों की छातियों में, 
बीज हम बोते रहे

सागरों की चीख और कहकहे इन आँधियों के, 
रात भर होते रहे

ठान ही हमने लिया जब मेघ, सूरज, तारे, 
चन्दा क्या करें तब ?

बिजलियों के बिस्तरे, नम मेघों की चादर तले, 
'जय' बेधड़क सोते रहे

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