Thursday, April 19, 2018

जिजीविषा

रुधिर जब  मुक्त होता है तो धमनी रोक  ना पाती 
सहज ही बह निकलते अश्रु, विरहणी रोक ना पाती 
भले  ही  फेंक  दो  इसको, तले  पत्थर  शिलाओं के 
अंकुरित  हो  गया 'जय' तो, ये धरणी रोक  ना पाती 

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