kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Monday, April 23, 2018
करवट
है नेकी जो भी ज़माने में, था उन्हीं का हुक्मरां मैं
दोस्तों की जुबानी में, प्रकृति का था कहकशां मैं
समय ने करवटें बदली, हवा भी रुख बदल बैठी
'जय' अपनी उम्मीदों का, रुका सा अब कारवाँ मैं
हुक्मरां - शासक
कहकशां - कहकहा
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