kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Thursday, April 19, 2018
अनजाना
वो देखो उसकी मुट्ठी में, एक दाना भुना सा है
लंगोटी उसके तन पर है, माथा कुछ तना सा है
भले ही काया श्यामल हो, हृदय में गंग - धारा है
न जाने क्यों फिर से 'जय', अनजाना बना सा है
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