मेरी नैनीताल यात्रा
वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गयी
ये रानीबाग है,
कभी एचएमटी घड़ियों का कारखाना होता था यहाँ
किन्तु अब शेष हैं कुछ निशानियाँ
बुज़ुर्गों की जुबानी कुछ कहानियाँ
यहाँ से शुरू होता है इक सर्पिणी सी सड़क का एक छोर
यहीं है मचलती, मटकती, बहकती हुई गाड़ियों का
शोर
एक तरफ ऊँचे ऊँचे कंगूरे तो
दूसरी तरफ बहुत गहरी ढलान
कंगूरों में हैं चीड़ और सागौन
तो ढलानों में फिसलन और चट्टान
एक के पीछे दूसरी चढ़ती गाड़ी
तो सामने से आ रहा बलखाता वाहन
कहीं कहीं चोटी से गिरता पतला झरना
तो बीच बीच में घना वन
यह तल्लीताल है और यही है
सुरम्य नैनीताल का सिंह-द्वार
यहीं है बसअड्डा, टैक्सी स्टैंड
व मालरोड पे सैलानियों की भरमार
कहाँ कानपुर की वह इकतालीस डिग्री की गर्मी
यहाँ शाम के धुँधलके के साथ उतरती गुलाबी सर्दी
अथाह झील में दिख रहीं हैं
अनेकों रंग बिरंगी नौकाएं
कुछ में जोड़े, कुछ में परिवार,
कुछ में युवा, कुछ में बालाएं
कहीं हैं उँगलियों में उँगलियाँ फँसाये
मदमस्त हनीमून कपल
कुछ परिवारों के मुखिया खोज रहें हैं
उनके गुजरे एकांत वे पल
झील की नौकाएं, रोपवे की ट्रालियाँ
अचानक यादों में छा गयी
तीस साल पुरानी 'जय',
वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गयी
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