Sunday, April 29, 2018

फिर से ..

(1)
अब भी हमारी साँसों में एक साँस घुली है
जैसे कि जन्नतों की कोई खिड़की खुली है
मेरे  नसीब में नहीं 'जय' जिसकी  यारियाँ
कुदरत उसी से आज मिलाने को तुली है 

(2)
'जय' वो हमारे  जिगरोदिल टटोल रहे हैं
जबरन  हमारे  बोल  हमसे  बोल  रहे हैं
बेशर्त  हमने  चाहा  था उन्हें टूट टूट कर
वो मेरा दिल कभी तो अपना तौल रहे हैं

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