मेरी नैनीताल यात्रा - गरीब रथ
विशाल पुल के नीचे सिकुड़ी, सिमटी, लाजवन्ती सी गंगा
मटमैले-काले पानी में स्नान-आचमन करते भक्त व पण्डा
आँखे बंद कर धीरे धीरे सरकती हुई गरीब रथ ।।
कानपुर से ही एक माल गाड़ी के पीछे सरकती हुई सवारी गाड़ियाँ
साथ में बैठे ढेरों पुलिस वालों के मुँह से छूटती अश्रवणीय गालियाँ
सिसकते हुए धीरे धीरे सरकती हुई गरीब रथ ।।
सिर्फ माँ को ही कहा जाता है इस प्रकृति का जीवित भगवान
इसी भगवान के लिए हमने ही बोली हैं सर्वाधिक गन्दी जुबान
शर्मिंदा होकर धीरे धीरे सरकती हुई गरीब रथ ।।
यह लखनऊ का सवेरा है, यहाँ पर पक्षियों का डेरा है
छोटी बड़ी हजारों चिड़ियों का प्लेटफ़ॉर्म में ही बसेरा है
गुनगुनाते किन्तु धीरे धीरे सरकती हुई गरीब रथ ।।
गाड़ी कानपुर से एक घण्टा किन्तु अब समय से 2 घण्टे पीछे है
लेकिन बरेली के बाद इसका इंजन गाड़ी को ताबड़तोड़ घसीटे है
हाँफती और अब सरपट चलती हुई गरीब रथ ।।
काठगोदाम आ गया, गाड़ी का अंतिम विश्राम - स्थल
नैनीताल चलने की मनुहार करते टैक्सी चालकों का दल
मुस्कुराती, यात्रियों को बाय करती हुई गरीब रथ।।
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