मुंशी धुन्नीराम
वर्ष 1973 की
सर्दियों का समय था. हम कक्षा पाँच में पढ़ रहे थे. हमारी वार्षिक परीक्षाएँ होली
के बाद होने वाली थीं और विशेष बात यह थी कि ये बोर्ड परीक्षाएँ थीं. हम सभी पहली
बार बोर्ड का नाम सुन रहे थे. अध्यापकों द्वारा हमें लगातार किसी दूसरे विद्यालय
में जाकर कैसे परीक्षा देनी है यह बताया जा रहा था. एक अदृश्य भय था जो हम सभी के
मन में समाया हुआ था.
इसी दौरान हमारी पाठशाला के प्रधानाचार्य
त्रिपाठी जी सेवानिवृत्त हो चुके थे और कुछ महीनों के बाद नए प्रधानाचार्य
धुन्नीराम जी नियुक्त हुए थे. औसत कद काठी के धुन्नीराम जी गाढ़े साँवले रंग के थे.
वे झक्क सफेद धोती, कुर्ता और गांधी टोपी पहनते थे. उनके हाथ में
सदैव एक छड़ी रहती थी. ज़रा सी गलती या अनुशासनहीनता पर हथेलियाँ लाल कर देते थे.
कुछ ही दिनों में छात्रों के बीच में वे एक कड़क मुंशी जी के नाम से मशहूर हो गए
थे.
आसपास के गांवों से आनेवाले कुल जमा बीस छात्रों का बैच था इसबार कक्षा
पाँच में. जिसमे तीन लडकियां और शेष लड़के . छमाही की परीक्षाओं में हम सभी बुरी
तरह फेल हुए थे क्योंकि पाठ्यक्रम ही पूरा नहीं हो सका था. छमाही के बाद धुन्नीराम
जी ने अन्य दो अध्यापकों ( पहले अध्यापक कक्षा एक और दो को पढ़ाते थे जबकि
दूसरे अध्यापक कक्षा तीन और चार को पढ़ाते
थे और प्रधानाचार्य कक्षा पाँच को पढ़ाने के साथ अन्य प्रशासनिक कार्य करते थे)
सम्पर्क करके एक समाधान खोजा . समाधान यह कि यदि सभी छात्रों से मिटटी के तेल (केरोसिन आयल) केलिए कुछ पैसे एकत्र कर लिए जाएँ तो (पड़ोस में बने जूनियर हाई स्कूल
की तर्ज पर) रात्रिकालीन कक्षाएं आरम्भ करके पाठ्यक्रम पूरा करा दिया जाए. अब हम
सभी को बताया गया कि सभी लोग पाँच पाँच रूपये मिटटी के तेल के लिए जमा कर दें और
जब बताया जाए तब से खाना खाकर रात आठ बजे तक स्कूल आ जाएँ. रात बारह बजे तक पढ़ाई
होगी फिर सभी सो जाएँगे और तड़के छह बजे सब अपने अपने घर चल जायेंगे ताकि तैयार
होकर पाठशाला आ सकें. रात में सभी को दरी रजाई भी लानी थी. लड़कियों के लिए रात की
कक्षाओं में आना मना था.
कुछ ही दिनों में लगभग दस - ग्यारह छात्रों ने पाँच
पाँच रूपये जमा करा दिये. एक हफ्ते बाद हमें रात में आने के लिए कह दिया गया. मैं
अपने चचेरे भाइयों भानु, बाबू, बच्चा, पप्पू
आदि के साथ गाँव के कुछ और बच्चों कल्लू, मुन्ना, डीवी
आदि के साथ दरी रजाई और पुस्तकों से भरे बस्ते को लाद कर स्कूल पहुँच
गया . उम्र में छोटा होने के कारण मेरी देख रेख का जिम्मा पिताजी ने चचेरे भाइयों
पर डाल दिया था.
पहले एक हफ्ते तक प्रतिदिन यही कोई दो तीन
घंटों में पढ़ाई हुई. प्रकाश के केरोसिन भरी तीन चार बोतलें जलती थीं किन्तु उसका धुआँ भी भर जाता
था . यद्पि कक्षा में चार बड़ी बड़ी खिड़कियाँ थीं किन्तु रात की सरसराती हवाओं के
कारण बंद रहती थीं. धुन्नीराम जी की कड़ाई से कक्षा में जो शैतानियाँ बंद हो गयीं
थीं वे अब रात में अंकुरित होने लगीं थी. कक्षा में कोई भी शैतानी करें लेकिन
उँगली भानु और कल्लू पर भी उठती थी. इस बात से ये दोनों कुछ परेशान हो गए थे. अब
रात की कक्षाओं में इन दोनों ने इसका बदला लेने का उपाय सोचा.
जैसे ही रात की पढ़ाई समाप्त होती, एक
दिए के अलावा सभी दिए बुझा दिए जाते थे. हम सभी फर्श पर अपनी अपनी दरियों पर सो
जाते और धुन्नीराम जी इसी कक्ष में अपनी मेज के बगल में एक चारपाई डाल कर सोते थे.
जलता हुआ दिया उनकी मेज पर ही रहता था. अब
सर्वप्रथम उस दिए को बुझाया जाता और फिर सोते हुए धुन्नीराम जी के ऊपर दो चार
घूँसे थप्पड़ मारे जाते. इन दोनों कार्यों में एक कार्य भानु और दूसरा कल्लू करते थे. अगले दो दिनों तक जब मास्साब ने इस विषय में न
तो किसी अध्यापक को बताया और न ही किसी छात्र से पूछताछ किया तो लगा कि धुन्नीराम
जी डर गए हैं . यद्यपि प्रतिदिन कक्षा में उनकी खोजी निगाहें कुछ न खोजती रहती थीं
किन्तु वे किसी के चेहरे भाव कोई संकेत नहीं पा सके. इसका कारण यह था कि जुगल जोड़ी
ने इस कार्य को दो तीन विश्वस्त छात्रों से ही साझा किया था वह भी इस हिदायत के
साथ कि यदि इस बात की जानकारी मा’साब को हुई तो
जितने डंडे वे मारेंगे उसके दसगुने डंडे उन विश्वस्त छात्रों को भी पड़ेंगे.
आत्मविश्वास ने गड़बड़ कर दी. उस दिन कल्लू को
किसी बात को लेकर धुन्नीराम जी ने दो चार डंडे मार दिए थे. बस जुगुल जोड़ी के बीच
दिनभर योजनायें बनती रहीं कि आज राज रात में क्या करना है . यद्यपि भानु ने आज कुछ
भी करने को मना किया क्योंकि इससे मास्साब को शक हो जाएगा किन्तु कल्लू का पारा
अभी भी आसमान पर उड़ रहा था. कल्लू ने भानु को दोस्ती का वास्ता दिया और साथ देने
को कहा. शाम ढली और रात आयी. निर्धारित
समय पर सभी विद्यालय पहुँच गए. रात की पढ़ाई चालु हो गयी किन्तु आज कल्लू को एक
अक्षर भी समझ में नहीं आया . उसकी आँखों में यह जलते दिए बहुत अखर रहे थे आज. खैर
राम राम करते वह घड़ी भी आयी जब एक अकेला दिया मास्साब की मेज पर जल रहा था.
जैसे ही धुन्नीराम जी के खर्राटे सुनाई पड़े, भानु
ने घुटनों के बल धीरे धीरे चलते हुए मेज के पास जाकर जलता दिया बुझा दिया और तेजी
से चलकर अपने स्थान पर लेट गए. अब कल्लू
की बारी थी मास्साब को सबक सिखाने की. कल्लू भी घुटनों के बल रेंगते हुए मास्साब
चारपाई तक पहुँच एक हाथ से मास्साब के चमरौधा जूते को उठाकर उसी से बहुत तेजी से
पाँच छह प्रहार उनके सिर पर कर दिया. और फिर तेजी से रेंगकर अपने स्थान पर लेट गए.
भानु ने फुसफुसाते हुए पूछा - अब तो खुश ?
कल्लू - अरे नहीं भाई ! आज एक बार और मारब .
भानु - अरे नहीं नहीं... ऐसा न करो .. कल फिर
देखा जाएगा ..
कल्लू - न भाई ! चैन तबहीं अइहै जब एक बार और मारि लेइब ..
भानु - सोच लो ..आज हो गया .. कल फिर हउका जाइ
..
कल्लू - अच्छा रुको .. हम अबहीं निबटा के आय
रहे हन ..
और वह एक बार फिर से धीरे धीरे रेंग कर
धुन्नीराम जी की चारपाई तक पहुँच गए इस बात से बेखबर कि मास्साब उठकर बैठ गए हैं
और वे अँधेरे में आँख फाड़ कर किसी हरकत का पीछा कर रहे हैं. दरअसल वे मुँह खोलकर
सोते थे और थोड़ीदेर पहले किया गया प्रहार उन्हें बहुत कस कर लगा था. वे तिलमिलाकर
बैठ गए थे. जैसे ही उन्हें लगा कि कोई इधर ही आ रहा है, उन्होंने
अपने दोनों जूते नीचे से उठा लिए थे. उन्हें आभास हुआ कि कोई है जो नीचे कुछ खोज
रहा है तभी उन्होंने जूता पकडे हुए एक हाथ को उठाकर अपनी भरपूर ताकत से प्रहार
किया जो किसी की पीठ से टकराई. प्रहार के साथ ही मास्साब ने उद्घोष किया ....
"वो मारा" . प्रहार से प्रतिपक्षी की हल्की सी चीख निकल गई किन्तु वह
इतनी अस्पष्ट थी कि मास्साब पहचान नहीं पाए. उन्होंने धड़कते दिल से (बाद में पता
चला कि मास्साब बहुत बड़े डरपोक थे) दिया जलाया और भानु और कल्लू नज़दीक से जाकर
देखा .. वे दोनों निधड़क मुँह फैलाये सो रहे थे. दो बार देखा .. किन्तु वे दोनों सोते ही रहे. मास्साब ने धीरे धीरे
सभी छात्रों के चेहरे देखे किन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी. . सभी सो रहे थे.
उन्होंने दरवाजे को देखा .. वह अंदर से बंद था...तब उन्होंने कपाट-रहित द्वार से कक्षा चार में प्रवेश किया .. वहाँ भी सन्नाटा था और
उसके दरवाजे भी अंदर से बंद थे.
अब तो मास्साब को जाड़े में भी पसीना आ गया ..
उन्हें इतना तो सुनिश्चित लगा कि उन्होंने किसी के शरीर पर ही प्रहार किया था और
हल्की सी चीख भी निकली थी .. पर वह था कौन !! इस प्रश्न ने उनकी नींद उड़ा दी थी.
खैर वे लेट गए और रजाई को सर से खींच लिया . लेटने से पहले उन्होंने जूतों को
चारपाई के पैताने की तरफ बिस्तर के नीचे रख लिया था. कुछ पलों के बाद कक्षा में
उनके खर्राटे गूँजने लगे.
अगले दिन कक्षा में धुन्नीराम जी ने कल्लू और
भानु को छोड़ कर अन्य सभी रात्रिकालीन विद्यार्थियों से रात की घटना के विषय में
घुमाफिरा और बहला फुसला कर पूछा किन्तु नतीजा ढाक के वही तीन पात रहा .. अंत में
उन्होंने कल्लू और भानु को बारी बारी से कार्यालय में बुलाकर एकांत में पूछा ..
डराया ..किन्तु वे दोनों अनजान बने रहे .. न मुस्कुराहट उभरी न डर उभरा . उलटे
उनदोनों में मास्साब से ही पूछा कि वस्तुतः रात में हुआ क्या था. इस पर मास्साब ने
उन्हें बताया कि किसी ने उनकी चारपाई को जोर से हिलाया था. .. इस पर भी दोनों को
हँसी नहीं आयी और वे दोनों भी निर्दोष साबित हुए. अब मास्साब ने इन दोनों से ही कह
दिया कि वे ही पता लगाएं कि किस लड़के ने यह कार्य किया है . दोनों ने हामी भर दी.
यह रात बिना किसी उपद्रव के गुजर गयी. तड़के
जलता हुआ दीपक देख कर मास्साब के माथे की लकीरें कम हुईं थी. अगली रात रात्रिकालीन
पढ़ाई की अंतिम रात्रि साबित हुयी. उस रात की सुबह मास्साब स्कूल में नहीं नज़र आये
तो हम सभी हैरान हुए. कार्यालय बंद था किन्तु उसके अंदर रखी रहने वाली मास्साब की
साइकिल नहीं थी. कयास लगाया गया कि धुन्नीराम जी पाँच छह किलोमीटर दूर अपने गाँव चले गए होंगे .
लगभग बारह बजे मास्साब की साइकिल सड़क से स्कूल
की तरफ मुड़ती दिखी .. यह हम सबने कक्षा की खिड़कियों से देख लिया था. आते ही
उन्होंने कार्यालय में अन्य दोनों अध्यापकों को बुलाया था. कुछ देर विचार विमर्श
किया और फिर तीनों कक्षा पाँच में आये. दीक्षित जी ने भेदी नज़रों से हम सभी को
देखा और कुछ खोजने का प्रयत्न करते रहे. असफल रहने पर वे कक्षा तीन-चार की तरफ
निकल गए. अब बजरंगबली जी ने हम सभी को अपनी आदत के अनुसार हँसते हुए देखा . बार
बार देखा .. कल्लू और भानु को देखते हुए पलकों को उठाया गिराया किन्तु दोनों के
भाव एक जैसे ही रहे .. फिर वे भी कक्षा एक-दो की तरफ चले गए. अब धुन्नीराम जी का
माथा सटक गया . उन्होंने मोटा रूल निकाला और रात में पढ़नेवाले सभी लड़कों की
हथेलियों में चार चार रसीद किये. वे हांफने लगे और अपनी कुर्सी पर बैठ गए.
शाम को जब हम अपने घर पहुँचे तब हमें असली बात
का पता चला .. बजरंगबली जी ने पिताजी को बताया था कि रात में किसी बच्चे ने
धुन्नीराम जी के जूतों में सु-सु ( यहाँ पर सु-सु ही लिखूँगा क्योंकि किया तो कुछ
और ही था ) कर दिया था . सुबह उठने पर जैसे ही जूतों में उन्होंने पैर
डाले तो सन गए. उसी समय वे अपने घर चले गए और फिर इत्मीनान से नहा धोकर और कपड़े
जूते बदल कर आये. पिता जी ने जब मुझसे पूछा
तब मैंने ऐसी किसी घटना की जानकारी से इंकार कर दिया .. उन्होंने मेरी
आँखें देखी और वहाँ आँसू देख कर सहज ही स्वीकार कर लिया. एक गुरु के साथ किये गए ऐसे आचरण के लिए उन्होंने हमें डाँटा और शिकायत मिलने या इन पापों में सम्मिलित पाए जाने पर हमारी दुर्गति करने का विश्वास भी दिलाया.
इस घटना के बहुत दिनों के
बाद पता चला कि यह कार्य बाबू ने किया था.
पाँचवीं की बोर्ड परीक्षाओं में इस पाप का घातक
असर अगली बार .. 'जय' हो.
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