Wednesday, April 18, 2018

=== मलंग ===


=== मलंग ===


पुष्प से सुगंध को

मन से अंतरंग को

मधुप से पराग को

मुझसे मेरी आग को

कैसे  मैं उधार दूँ ?

या इन्हे ही मार दूँ !

ठिठक गए हैं कदम
पूर्ण सजग किन्तु मन

बदल रहे हैं  रंग ढंग

शशक से बना कुरंग ||1||



सिंधु होअनंग हो

शुभ्र होबहुरंग हो

विकटता की छाप हो

या बदरंग अलाप हो

चाहे शत्रु अनाहूत हो

या सामने यमदूत हों

वनपहाड़पंकधुआँ

मन अब निःशंक हुआ

द्वंद्व सभी टूट गए

बंद सभी छूट गए ||2||


उठ रही उमंग है

हृदय में तरंग है

तन रही हैं मुट्ठियाँ

बंद हुयी हिचकियाँ

व्योम भेदना है मुझे

शब्द छेदना है मुझे

मैं अभी लाचार हूँ

क्योंकि बिन आधार हूँ

शक्ति किन्तु शेष है

हृदय-कम्प अशेष है ||3||


मेरा स्व - संवाद है

हाँ! ये मुक्तिनाद है

कदमताल भा रहा

नवविहान आ रहा

अब बसंत आ गया

जय मलंग गा रहा ||4||


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