Friday, November 8, 2013

तुम गाओ आज मल्हार प्रिये


तुम गाओ आज मल्हार प्रिये 
'जय' हृदय करे स्वीकार प्रिये 
आ  गयी शरद ऋतु मतवाली 
तुम  करो  नवल  श्रृंगार प्रिये

सब  चंचल नदियाँ धीर हुईं
जल  धाराएँ  कम  नीर  हुईं
धवल स्वच्छ है  नीलगगन 
ये  बहती  पवन शमसीर हुईं
तुम सुनो आज मनुहार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये

है चाँदनी ओस से भरी  हुयी
छज्जे पर चिड़ियाँ डरी  हुयी
बालू  पर  तरणि  चलाने की 
अब  बूढ़ी  आशाएं  हरी  हुयी
तुम करो आज उपकार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
  

यौवन  है शेष  नहीं, तो क्या
है  युवा उमंग तो डरना क्या
हम बिन पंखों के नभ छू लेंगे 
पंखों  के  बल पर उड़ना क्या
तुम  रचो  नवल  संसार  प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये

अब सृजन नहीं, आभार प्रिये
कर्तव्य  रहित अधिकार प्रिये
कुशल चिकित्सक बन करके
तुम  करो  स्पर्श-उपचार प्रिये
तुम  गाओ आज मल्हार प्रिये
'जय' हृदय करे स्वीकार प्रिये 
आ  गयी शरद ऋतु मतवाली 
तुम  करो  नवल  श्रृंगार प्रिये


(चित्र : साभार गूगल )

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