Sunday, November 17, 2013

(फिर से) ...... पपीहरे की बूँद ...



अति    समीप्यबोध   को   दूर   तो   हटाइये
हृदय - दधीचि मर रहा है  फिर  परोपकार में

मन - मयूर  रो  रहा  है   बादलों  के  शोर  से
नयन मीन बन गए हैं  प्रिय बिना त्यौहार में

चमक - चमक  दामिनी  उर  -  प्रदाह  दे  रही
या  कि  भार बढ़ गया  है  आज कंठ - हार में

रक्त - रंजिता  हुयी  हैं   भावनाएं   आज  सब
कुचल-२ के मर रही हैं मन-महिष की मार से

चाहना  यही  है  एक,  प्रिय  बहुत  समीप  हो
एक  बार आन   मिलो  अब  असीम प्यार में

डूब  चली  शोक  में  पपीहरे   की   बूँद ' जय '
दग्ध हृदय, तप्त गात, मन है  उदधि  ज्वार में


चित्र सौजन्य : गूगल 

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