Sunday, March 25, 2018

संस्कार

कम शब्दों में "संस्कार" शब्द को परिभाषित करना बहुत ही कठिन कार्य है। "संस्कार" मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है। किसी अन्य भाषा में "संस्कार" शब्द के समकक्ष दूसरा शब्द है ही नहीं । इस शब्द का अनुवाद करना कठिन है ।

विश्व की बहुत सी प्रमुख भाषाओं के शब्दकोषों और शब्दावलियों में  "संस्कार" शब्द को ऐसे ही स्वीकार कर लिया गया है।

"संस्कार" शब्द का शाब्दिक तात्पर्य है शुद्ध करना, परिशोधित करना, पूर्ति करना, चमत्कृत करना अथवा अंतरात्मा का श्रृंगार करना । सच कहूँ तो "संस्कार" शब्द की परिभाषा समुद्र की गहराई जितनी चौड़ी और आकाश की ऊँचाई जितनी लम्बी है। फिरभी "संस्कार" शब्द को निम्न ढंग से परिभाषित कर सकते हैं :

* "संस्कार" - साधारण मानव के अंदर आत्मसात नकारात्मक धारणाओं को खोदकर बाहर निकालने के बाद उसके व्यक्तित्व को आदर्श और सुघड़ बनाने की प्रक्रिया है। यही "संस्कार" साथ ही मनुष्य के मानवीय मूल्यों को और अधिक सक्रिय, स्फूर्त और चैतन्य बनाते हुए उसे न केवल अपने बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायी बना देते हैं ।

* "संस्कार" - एक छोटे बच्चे के अवचेतन मन में मानवीय मूल्यों के छोटे से बीज को रोपने के जैसा है जिसके कारण ये मानवीय मूल्य रूपी बीज विशाल वृक्ष का रूप धारण करके न केवल उसकी आदत और चरित्र बन जाते हैं बल्कि सम्पूर्ण जीवन उसे अनुशासित भी करते रहते हैं । इन्ही संस्कारों के कारण एक मनुष्य अपने अन्तर्मन में बसे एक आदर्श के अनुसार आचरण और व्यवहार करता है।

*"संस्कार" - मनुष्य की भावनाओं, विचारों, कार्यों और क्रियाओं को शुध्द करते हुए न केवल उसके जीवन को जीवंत बना देते हैं बल्कि उसके अन्तर्मन को शुद्ध करके उसके जीवन को एक अर्थ दे जाते हैं ।

*"संस्कार"- मनुष्य के मस्तिष्क में सच्चरित्रों और सद्विचारों को जोड़ देते हैं जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व अति विलक्षण बन जाता है।

*"संस्कार" - सामाजिक मूल्यों को विकसित करते हैं और एक संस्कृति को तैयार करते हैं। सच यही है कि संस्कृति, आचरण, व्यवहार और संस्कार;  ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और अविभाज्य हैं ।

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