अभी तो चाँद देखा है, सितारे खूब देखे हैं
समुन्दर के सपूतों से, जवारे खूब देखे हैं
नदी में झरने गिरते हैं व सागर में गिरे धारा
बरफ बनती है जब झरने, नज़ारे खूब देखे हैं
उफनते है कभी दरिया तो साहिल दूर होते हैं
गले मिलते नदी के कुछ किनारे खूब देखे हैं
बहारें आती चुपके से,फिजाओं में पसर जाती
खिजां के आने जाने के, इशारे खूब देखे हैं
कडकती ठण्ड में वायु सहमती सी चली आती
मचलती धूप में बहते, हव्वारे खूब देखे हैं
मुहब्बत रूह है लेकिन, रूहें कब मिला करती
बिना रूहों के पागल 'जय', बेचारे खूब देखे हैं
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