मनःसंताप दुष्कर है,
हृदय पर दाब भारी है
स्मृतियों की चौखट में,
यह कैसी लाचारी है
उमंगें मर गयी सारी,
सपनों के चिथड़े हो गए
कल्पनाओं के पंख कटे,
भावनाओं की बारी है
कौतूहल जिज्ञासा जैसे कहीं कन्दरा
में जा बैठे
जिह्वा तालू से चिपकी है,
दुबकी हँसी बिचारी है
आज नही है आसपास अब मित्र,सगा न
अपना
ये कैसी दुनिया सारी है,
ये कैसी दुनियादारी है
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