. (कहानी)
रचनाकार : जयसिंह भारद्वाज
बालकनी में रखे गमलों में पानी स्प्रे करते समय देखा कि एक गमले में गुलाब का एक पीला फूल एक छोटी सी कली के साथ मुस्कुरा रहा था। मैं सहसा ठिठक गया और हृदय से एक स्वर उभरा .."सुधा" और साथ ही फिराक गोरखपुरी का यह शे'र भी:
'एक मुद्दत से तेरी याद भी आयी न मुझे
और हम भूल गए हों तुझे, ऐसा भी नहीं'
...........#..........
सुधा.. मेरी जीवनसंगिनी।
बेटा दस वर्षों का हो गया और तुम्हें एक बेटी भी चाहिए थी। हमने प्रयास किया था किंतु पिछले वर्ष जाड़ों में मिसकैरिज हुआ और हम फिर से खाली हाथ रह गए।
इस बार हमने खूब सावधानी रखी। बराबर चिकित्सकों के सानिध्य में रहे और फिर उनके द्वारा हमारी खुशियों के लिए मई माह के प्रथम सप्ताह को निश्चित कर दिया गया। हम प्रसन्न थे, तुम तो बहुत अधिक प्रसन्न थीं।
फरवरी में तुमने एक दिन कहा था कि घर में एक पीला गुलाब लगा दो। जब मैंने इसका कारण पूछा तो तुमने कहा था कि पीले रंग में वात्सल्य छुपा होता है। पीला रंग नवजीवन का प्रतीक है। पीला रंग बसन्त ऋतु का रंग है। मैं अपनी बेटी के साथ पीले गुलाब के फूलों से खेलूँगी। एक गमले में मैंने पीले गुलाब की कटिंग लगा दी थी। आशा थी कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक इसमें फूल आने लगेंगे तभी हमारी गोद में भी एक फूल आ चुका होगा।
..............#............
विवाह के इन बारह नकारात्मक वर्षों में मैंने तुम्हारे अंदर पिछले दो वर्षों में सकारात्मक परिवर्तन देखे थे। मुझे आश्चर्य हुआ था यह जानकर कि अब तुम मेरी अम्मा, भाभियों और बहनों से बराबर बात करती रहती हो। जबकि पहले इनका नाम सुनकर ही तुम्हारा रक्तचाप बढ़ जाता था।
कभी अम्मा को अपने पास रखने या घर मे कुछ आर्थिक सहायता करने की इच्छा व्यक्त की तो तुमने सदैव मना ही किया किन्तु मुझे मेरे अम्मा और भाई भाभियों से बहुत प्यार है इसलिए मुझे जो करना होता था वह कर ही लेता था। शायद गर्भावस्था के कारण बदलते हुए हार्मोन्स से तुम्हारी प्रवृत्ति में सुखद परिवर्तन आये होंगे।
एक बार तुम्हारे पापा से तुम्हारी आदतों की वजह जाननी चाही थी तो उन्होंने बताया था कि तुमने बचपन से तुम्हारे पापा को तुम्हारे चाचा और भतीजों की हरसंभव आर्थिक सहायता करते देखा था और जब पापा को पैरालाइसिस का अटैक आया और पैसों की जरूरत हुई तो कोई चाचा भतीजा सामने नहीं आया था। इस घटना ने तुम्हारे मन मे गहरी छाप छोड़ी थी। इसी कारण तुम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मुझको मेरे परिवार से पृथक रखना चाह रही थीं।
तुम भले ही एक अच्छी बहु, देवरानी या भाभी न बन पायीं हो किन्तु एक अच्छी माँ और केयरिंग पत्नी अवश्य थीं। मुझे कब, कहाँ और क्या चाहिए.. वह सब समय पर सुनियोजित मिल जाता था।
.......... # ...........
मार्च माह में तुम्हें कोरोना डायग्नोस हुआ। बस... तुम तो जैसे गुमसुम हो गयी थीं। अगले टेस्ट में मुझे और बेटे को भी पॉजिटिव पाया गया था। तीनों ही अपने रूम में क्वारन्टीन हो गए थे। औषधियों के साथ योगा व काढ़ा भी लिया जाता रहा और अप्रैल के प्रथम सप्ताह में हम तीनों ही निगेटिव आ गए। हाँ, अभी भी हमें सावधानी रखनी थी और हम रख भी रहे थे। तुम्हारी प्रेग्नेंसी पूर्णकालिक हो चली थी और हमें आशा थी कि मई के प्रथम सप्ताह के बजाय अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही हमें हमारी खुशी मिल जाएगी।
20 अप्रैल को अचानक तुम्हारा ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा और इतना कम हो गया कि स्त्रीरोग विशेषज्ञ ने अविलम्ब भर्ती करने को कहा। तुम कोरोना सेंटर में भर्ती हो गईं और ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ने लगा। तुम प्रतिदिन वहाँ उपस्थित डॉक्टर से मेरी बात कराने लगीं थी ताकि दिन प्रतिदिन के अपडेट्स मुझतक पहुंचते रहे। तुम स्वयं भी रिकवरी से उत्साहित थीं। फोन पर तुम एक बार पीले गुलाब के पौधे का ज़िक्र अवश्य करतीं थी।
26 अप्रैल को डॉक्टर ने बताया कि ऑक्सीजन का स्तर 85 है और यदि 90 तक आ गया तो आपातकाल से हटा दिया जाएगा। मुझे सन्तुष्टि मिली थी। तुम भी खुश थीं।
अगले दिन 2 बजे दोपहर अस्पताल से फोन आया और मुझे बुलाया। पहुंचने पर बताया कि हालात अचानक बिगड़े हैं अतः वे बेबी को बचाना चाह रहे हैं और इसके लिए ऑपरेशन करना होगा। यह ऑपरेशन जच्चा व बच्चा दोनों के लिए घातक था लेकिन वे चांस लेना चाह रहे थे और इसके लिए मुझे बॉन्ड साइन करना था। विकल्प नहीं था। हस्ताक्षर कर दिए।
रात्रि आठ बजे फोन मिलता है कि बेबी गर्ल को नहीं बचाया जा सका और तुम्हें वेंटिलेटर पर लाइफ स्पोर्ट पर रखा गया है।
हृदय में भय और आशंका इतनी प्रबल हो चुकीं थीं कि लगने लगा कि तुम अब इस दुनिया में नहीं हो। शायद डॉक्टर्स ने एक साथ दोनों की मृत्यु की सूचना न देकर मुझे भरमाया है। मेरी आँखें सजल थीं।
सोने से पहले बेटे ने मम्मी के बारे में पूछा था। मेरी आँखों में आँसू देखकर उसने कहा था, "पापा, प्लीज रोइये नहीं। मम्मी ठीक हो कर आ जाएंगी साथ में मेरी बहन भी लाएंगी.. है न!"
मैं क्या बताता कि बहन तो अब आने से रही और मम्मी का भी भरोसा नहीं है।
रात्रि दो बजे फोन की घण्टी बजी। धड़कते दिल और काँपते हाथों से उठाया। गीली आँखों ने देखा .. अस्पताल से ही काल थी.. हेलो
- जी हाँ, जयसिंह बोल रहा हूँ
- सिंह साहब, बैड न्यूज! हम आपके पेशेंट को नहीं बचा सके। कृपया प्रात: अस्पताल में आकर बॉडी पहचान कर क्रीमेशन के लिए ले जायँ। सारी व्यवस्था सरकार की तरफ से है।
सुधा अब सुधा नहीं रहीं। तुम बॉडी बन चुकी थीं।
............#............
नौकरी के कारण हम शहर में कमरा ले कर रह रहे थे। अब ट्रांसफर हो गया है। मेरी एप्लिकेशन पर कोई विचार नहीं किया गया। अंततः बेटे को नाना नानी की इच्छा पर उनके साथ रहने को छोड़ दिया और अपनी गृहस्थी समेट कर नए स्थान पर ले आया हूँ। आज 15 अगस्त का अवकाश था। सोचा गमलों को ठीक कर दूं। तभी मुस्कुराते हुए पीले गुलाब के एक फूल को देखा और साथ में एक नन्ही कली को..मेरे आँसुओं से बेखबर वे दोनों हवा में लहराते हुए बड़े प्रसन्न दिख रहे थे। प्रसन्न भी क्यों न हों.. माँ बेटी साथ साथ जो थीं...'जय' हो..