kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Monday, May 7, 2018
पूरक
लहरों से सजे सागर का मुख, बदली से निखरता है सावन
चन्दा से सजता नील गगन, कलियों से सजे प्यारा उपवन
यौवन से निखरती है तरुणी, चंचल होती है गति से पवन
दु:खों से मन धरती बनता, वनस्पतियों से 'जय' जल पावन
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