Wednesday, October 13, 2010
कहो तो कब ?
ज़माने में दिवानों की कमी दिखती नहीं या रब!
शुमारी का ख़याल आये, शुरू करना हमी से तब //
अरे! हैं सब ये दीवाने, जिस्म ओ सूरत, दौलत के
तेरी पाकीज़ा रूह से , मुखातिब हैं मेरे दो लब //
मेरे दीदों के लफ़्ज़ों को, अगर पढ़ पाओ, तो जानो
मेरे दीदों में कडवापन अगर देखा, कहो तो कब ??
ज़माना आज सुन्दर सा लगेगा क्यों नहीं तुमको
तेरे दामन में आये हैं सितारे, चाँद, सूरज सब //
तुम्हे फुर्सत अगर हो तो, हमारे पास आओ भी
सुबह से राह मैं देखूं, अभी होने को आयी शब् //
तुम्हारा साथ हो तो फिर , हमें रास्ता नहीं खलता
हमें मंजिल नहीं मिलती, तुम्हारा साथ ना हो जब //
हमारी है नहीं फितरत कि , हम डोलें यहाँ से वां
कोई इसको सराहे 'जय', कोई बोले मुझे बेढब //
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शुमारी = गिनती / पाकीज़ा = पवित्र / मुखातिब = सम्मुख /
दीदों = आँखों / शब् = रात्रि / नहीं खलता = कष्टकारी नहीं
प्रतीत होता / फितरत = विचारशैली / वां = वहां /
सराहे = प्रशंसा करे / बेढब = मूर्ख /
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