हमें ऐतबार ना होता, अगर हम सो रहे होते
खुली आँखों से देखा जो, उसी के हो रहे होते।
खुदा की मेहरबानी ही मुझे साहिल पे ले आयी
लहर थी एक ऐसी वह, भँवर में खो रहे होते।।
बला की शख्सियत उसकी, बड़ी भोली अदाकारी
चुहलबाजी, ग़ज़लगोई, खिलाड़ीपन, कथाकारी
हमेशा उसकी जानिब की गली में भीड़ रहती है
कदम दो गर चले होते तो हम भी भीड़ में होते।।
हमें शोहरत न रास आयी, तोहमत ही मिली इतनी
आहिस्ता हम चला करते, चलें वो जैसे हों बिजली
सदा वो हमसे कहते थे, महल सारा तुम्हारा है,
अगर 'जय' दिल की सुन लेते, ताला बन गए होते।।
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