Tuesday, April 15, 2014

मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !


अब  न  रोको, मैं  चलूँगी  साथ,  प्रियतम !
बिन गिरा के, है अकल्पित नाद, प्रियतम !

वनवास  में  श्रीराम  जी  को  क्या हुआ ?
उनके संग थी  संगिनी  मिथिला - सुता  
उर्मिला बिन लखन को आघात, प्रियतम !
अब  न  रोको, मैं  चलूँगी  साथ, प्रियतम !

मैं  अप्सरा  सी  रूपिणी  तो  हूँ  नहीं 
पर सप्तपद  की  संगिनी  तो  हूँ  सही 
माँगती हूँ वचनों का निर्वाह, प्रियतम !
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !

विरह  के एकाकी  पथ पर क्यों चलूँ ?
मैं  शरद  की  चाँदनी  में  क्यों जलूँ ?
मदन रह-रह फेंकता है पाश, प्रियतम ! 
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम ! 

बहुत  कुछ  है अर्थ, सब कुछ भी नहीं
मेरे समर्पित  प्रणय का, कण भी नहीं
यदि रही, तो होऊँगी 'जय' राख, प्रियतम !
अब  न  रोको, मैं  चलूँगी  साथ, प्रियतम !

गिरा : वाणी अथवा शब्द 
नाद : उच्च स्वर
मिथिला-सुता : सीताजी  
सप्तपद : सात भाँवरे (वैवाहिक बंधन) 
मदन : कामदेव  
पाश : बंधन 
अर्थ : धन(नौकरी) 


चित्र सौजन्य : गूगल 

No comments:

Post a Comment