अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !
बिन गिरा के, है अकल्पित नाद, प्रियतम !
वनवास में श्रीराम जी को क्या हुआ ?
उनके संग थी संगिनी मिथिला - सुता
उर्मिला बिन लखन को आघात, प्रियतम !
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !
मैं अप्सरा सी रूपिणी तो हूँ नहीं
पर सप्तपद की संगिनी तो हूँ सही
माँगती हूँ वचनों का निर्वाह, प्रियतम !
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !
विरह के एकाकी पथ पर क्यों चलूँ ?
मैं शरद की चाँदनी में क्यों जलूँ ?
मदन रह-रह फेंकता है पाश, प्रियतम !
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !
बहुत कुछ है अर्थ, सब कुछ भी नहीं
मेरे समर्पित प्रणय का, कण भी नहीं
यदि रही, तो होऊँगी 'जय' राख, प्रियतम !
अब न रोको, मैं चलूँगी साथ, प्रियतम !
गिरा : वाणी अथवा शब्द
नाद : उच्च स्वर
मिथिला-सुता : सीताजी
सप्तपद : सात भाँवरे (वैवाहिक बंधन)
मदन : कामदेव
पाश : बंधन
अर्थ : धन(नौकरी)
चित्र सौजन्य : गूगल
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