Thursday, April 5, 2018

जैसे कल की बात हो ...


जैसे कल की बात हो ...

हर रात वो अम्मा के साथ लेटने की खुशी 
वो भइया की पुरानी कमीज न पहन पाने की बेबसी 
फटे पुराने कपड़े पहनकर वो स्कूल जाना 
पिताजी के लिए खेतों में नाश्ता ले जाना 
वहीं पर मिलते अद्भुत संस्कार.. जैसे कल की बात हो ...

आजकल के बच्चे! जिन्हे अपना कमरा अपना बिस्तर चाहिए
पुराना रुमाल तक नहीं, जिन्हे कपड़े और जूते ब्रांडेड ही चाहिए
छोटे भाई बहनों से अपनी वस्तुएं शेयर करना इन्हें आता ही नहीं
कार्टून और स्मार्टफोन के अलावा इन्हें कुछ और भाता ही नहीं
अपनों के साथ वो अपनापन .. जैसे कल की बात हो ...  

बहनों का अम्मा के संग ख़ुशी-नाखुशी चौका-बुहारी  करना
भाइयों का गोबर - झाड़ू के लिए आपस में मारामारी करना
चौके के बाहर बैठकर गर्मागर्म पहली रोटी पाने की मनुहार
चतुर अम्मा भी एक रोटी के बना देतीं गर्मागर्म टुकड़े चार
आँखों में पसरी सभी की ख़ुशी ... जैसे कल की बात हो ...

अब आया ही झाड़ू-पोछा-बर्तन कर जाती, मम्मी नहीं 
अब बाल्टी में नहीं, पैकेट में आता है दूध मट्ठा घी दही
न्यूक्लियर फेमिली में अब भोजन की चिंता तो नहीं है
बर्गर - नूडल्स के अलावा बच्चे कुछ खाते भी नहीं हैं
तीनों समय का ताजा भोजन .. जैसे कल की बात हो ...

रविवारीय परिशिष्ट में सिनेमा के चित्र देखने के लिए वो खींचा - घसोटी
अखबार फटने पर किसी को मिलता थप्पड़, किसी की घसीटी जाती चोटी
रोते चिल्लाते सभी का अम्मा के पास जाना
वो प्यार भरा स्पर्श, वो ममता भरा दुलराना
वे स्वप्निल दिन .. जैसे कल की बात हो ...

अब अखबार और पत्रिका पढ़ने का समय किसे, डिजिटल का ज़माना है
किस्से कहानियों समाचारों के लिए तो गूगल ही बाबा दादा और नाना है
हाँ, यह सच है कि अब बच्चे ज्ञान से भरपूर हैं
इससे इन्कार नहीं कि वे अपनों से बहुत दूर हैं
छोटे बड़े संयुक्त परिवार.. जैसे कल की बात हो ...
 
तब एक साथ बैठ कर दादा-बाबा से कहानियाँ सुनते
अब एक टीवी रिमोट के लिए ही मम्मी-बच्चे झगड़ते
तब प्यार से किसी बच्चे के गालों को खींचना थी आमबात
अब शायद मान लिया जाएगा इसे 'जय' बहुत बड़ा अपराध
बच्चों से बेहिचक प्यार ... जैसे कल की बात हो ...

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