एक नन्हा सा पंछी बैठा था एक टहनी पर चुपचाप
प्रकृति की गोद में बुन रहा था सपनों का आकाश
ऊपर ऊँचाई पर उड़ती चीलों को देख स्वयं से बोला
एक दिन मुझे भी स्पर्श करना है यह अनन्त आकाश
अन्य रंगीले पक्षियों के साथ मैं भी कलरव करूँगा
सागर के असीम जल में नहाउँगा, गोते लगाऊँगा
विश्व के सुंदरतम उपवनों में नृत्य करूँगा, गाऊँगा
किसी विशाल वृक्ष के कोटर में होगा मेरा भी वास
बन्द आँखों में कई दृश्य चल रहे थे कि अचानक !
एक बाज ने उसके सपनों को हवा में उड़ा दिया
नन्ही सी जान बहुत मचली, फड़फड़ायी भी 'जय'
किन्तु बाज ने उसके गले में डाल दिया मृत्युपाश
उसी टहनी पर बैठ बाज ने उसको चिन्दी चिन्दी नोचा
फिर अतृप्त सा उड़ चला अन्य लक्ष्य की खोज में?
और पीछे छोड़ गया उड़ते छोटे पंख, अधखाया शरीर,
हवा में झूलती टहनी, शान्त समुद्र और नीरव आकाश!
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