Thursday, April 19, 2018

अतृप्त

एक नन्हा सा पंछी बैठा था एक टहनी पर चुपचाप 
प्रकृति की गोद में बुन रहा था सपनों का आकाश
ऊपर ऊँचाई पर उड़ती चीलों को देख स्वयं से बोला
एक दिन मुझे भी स्पर्श करना है यह अनन्त आकाश

अन्य रंगीले पक्षियों के साथ मैं भी कलरव करूँगा
सागर के असीम जल में नहाउँगा, गोते लगाऊँगा
विश्व के सुंदरतम उपवनों में नृत्य करूँगा, गाऊँगा
किसी विशाल वृक्ष के कोटर में होगा मेरा भी वास

बन्द आँखों में कई दृश्य चल रहे थे कि अचानक !
एक बाज ने उसके सपनों को हवा में उड़ा दिया
नन्ही सी जान बहुत मचली, फड़फड़ायी भी 'जय'
किन्तु बाज ने उसके गले में डाल दिया मृत्युपाश 

उसी टहनी पर बैठ बाज ने उसको चिन्दी चिन्दी नोचा
फिर अतृप्त सा उड़ चला अन्य लक्ष्य की खोज में?
और पीछे छोड़ गया उड़ते छोटे पंख, अधखाया शरीर, 
हवा में झूलती टहनी, शान्त समुद्र और नीरव आकाश!

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