kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Monday, April 13, 2015
कलश का दीप
जब कलश का दीप सहसा थर-थरा बुझने लगा
विश्वास का अवलम्ब जब हिलने लगा ढहने लगा
जब स्वयं के बिम्ब से ही मन - हृदय डरने लगा
तब ये जाना 'जय' विभव का सूर्य अब ढलने लगा
(चित्र सौजन्य : गूगल)
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