अज़ब गज़ब से रूप दिखाती है ज़िन्दगी
पल में हमें हँसाती है रुलाती है ज़िन्दगी
मझधार से वो नाव को किनारे पे कभी लाये
साहिल पे आ रहे को भँवर दिखाती है जिंदगी
जिसने मज़ाक बनाए थे लोगों पे रोज़ ही
इंतज़ार करो, उसकी हँसी उड़ाती है ज़िन्दगी
दोपहर में लाख तप रहा हो आफ़ताब
उस वक़्त बदलियों से शाम लाती है ज़िन्दगी
उड़ते जहाज़ को आसमां के पार ले जाती
गिरता है तो समुंदर में डुबाती है ज़िन्दगी
'जय' ने हराम माना जिन्हें सारी उम्र भर
क्यों उनके हसीं ख्वाब दिखाती है ज़िन्दगी
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