kabhee - kabhee ~~~~ कभी - कभी
Sunday, May 4, 2014
जीवन-नैया
लहरें
हैं श्वासों जैसी, 'जय' - जीवन है सरिता जैसा,
आशाओं सा उगता सूरज, ढलता सूरज है विपदा सा
कर्म - धर्म दो तट जैसे हैं, कुछ अधिकार सुदृढ़ नौका से
कर्तव्य बने पतवार हाथ में, निस्पृह - मन नाविक जैसा
Saturday, May 3, 2014
हे तारक!
हे तारक! इठलाओ मत तुम, अभी टूट जाओगे
टूटे तारे! याद ये रखना, कभी चमक न पाओगे
रजनी 'जय' जाने वाली है,ऊषा ने बिखराई लाली
सौम्य रहे तो गगन-पटल पर साँझ पुनः आओगे
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