Friday, November 15, 2013

(फिर से )..... उर्मिला सी तुम प्रिये हो ..



चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
बादलों से नाद लेकर , राग छेड़ूँ मैं गगन सा

प्रेम के पावन दिवस पर , क्या कहूं मैं आपको
मेरे तन के प्राण , धड़कन , आत्मा तो आप हो
मन व्यथित जब भी हुआ तो , नव दिशा दी आपने
लेखनी तुम मसि बना मैं , हो गया है नव सृजन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा

मुझ निठल्ले मनुज तन को , दे रही हो सुघड़ता
मरू के जैसे अतृण हृद को , दे रही हो आर्द्रता 
धन्य हो कि निमित्त मेरे, होम जीवन कर दिया 
तुम बनी समिधा सुहानी, और मैं पावन हवन सा 
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा 

रूपसी तुम हो न हो , पर तुम गुणों की खान हो
अभिमान हो सम्मान हो तुम , और मेरा मान हो
कामना है कि तुम्हारा , नाम हो परिमल सदृश
मृत्यु ले जायेगी तन , नाम है शाश्वत अगन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा

मैं तुम्हारी ही धुरी पर , गति सदा पाता रहा
तंतुओं की दृढ दशा में , रति सदा पाता रहा
तुम गृहस्थी में रमी हो , किन्तु हो तुम साधिका
उर्मिला सी तुम प्रिये हो और ' जय ' तापस लखन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा


चित्र साभार : गूगल 

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