Sunday, November 17, 2013
(फिर से) ...... पपीहरे की बूँद ...
अति समीप्यबोध को दूर तो हटाइये
हृदय - दधीचि मर रहा है फिर परोपकार में
मन - मयूर रो रहा है बादलों के शोर से
नयन मीन बन गए हैं प्रिय बिना त्यौहार में
चमक - चमक दामिनी उर - प्रदाह दे रही
या कि भार बढ़ गया है आज कंठ - हार में
रक्त - रंजिता हुयी हैं भावनाएं आज सब
कुचल-२ के मर रही हैं मन-महिष की मार से
चाहना यही है एक, प्रिय बहुत समीप हो
एक बार आन मिलो अब असीम प्यार में
डूब चली शोक में पपीहरे की बूँद ' जय '
दग्ध हृदय, तप्त गात, मन है उदधि ज्वार में
चित्र सौजन्य : गूगल
Saturday, November 16, 2013
Friday, November 15, 2013
(फिर से )..... उर्मिला सी तुम प्रिये हो ..
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
बादलों से नाद लेकर , राग छेड़ूँ मैं गगन सा
प्रेम के पावन दिवस पर , क्या कहूं मैं आपको
मेरे तन के प्राण , धड़कन , आत्मा तो आप हो
मन व्यथित जब भी हुआ तो , नव दिशा दी आपने
लेखनी तुम मसि बना मैं , हो गया है नव सृजन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
मुझ निठल्ले मनुज तन को , दे रही हो सुघड़ता
मरू के जैसे अतृण हृद को , दे रही हो आर्द्रता
धन्य हो कि निमित्त मेरे, होम जीवन कर दिया
तुम बनी समिधा सुहानी, और मैं पावन हवन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
रूपसी तुम हो न हो , पर तुम गुणों की खान हो
अभिमान हो सम्मान हो तुम , और मेरा मान हो
कामना है कि तुम्हारा , नाम हो परिमल सदृश
मृत्यु ले जायेगी तन , नाम है शाश्वत अगन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
मैं तुम्हारी ही धुरी पर , गति सदा पाता रहा
तंतुओं की दृढ दशा में , रति सदा पाता रहा
तुम गृहस्थी में रमी हो , किन्तु हो तुम साधिका
उर्मिला सी तुम प्रिये हो और ' जय ' तापस लखन सा
चाँदनी से शब्द लेकर , गीत गाओ तुम पवन सा
चित्र साभार : गूगल
Wednesday, November 13, 2013
अछुण्ण कृपा
लक्ष्मी की पूजा अर्चना खूब कर लें किन्तु उस पर विश्वास कदापि न करें। ईश्वर (परम शक्ति) की पूजा अर्चना करें अथवा न करें किन्तु उस पर विश्वास अवश्य बनाये रखें। लक्ष्मी स्वभाव से चंचल है अतः आप पर उसकी कृपा अस्थिर ही रहेगी जबकि ईश्वर शांत चित्त और गम्भीर है इस लिए आप पर प्रभु की अछुण्ण कृपा बनी रहेगी।
Tuesday, November 12, 2013
Monday, November 11, 2013
ढीठ अतिथि
दुःख बड़ा ढीठ अतिथि है। यदि यह हमारे घर के लिए निकल पड़ा है तो आयेगा अवश्य। यदि हम इस अतिथि को आता हुआ देख कर घर का मुख्यद्वार बंद कर लेंगे तो यह घर के पिछले दरवाजे से आ जाएगा। यदि हमने पिछ्ला दरवाजा भी बंद कर दिया तो यह खिड़की से आ जाएगा। यदि खिड़की भी बंद कर लिया तो यह छत तोड़ कर या फिर आँगन के धरातल को फोड़ कर आ जाएगा। यह आयेगा अवश्य . . ढीठ है न।
उचित यही है कि हम दुःख के स्वागत के लिए जीवन में सदैव तैयार रहें। ऐसे समय में हमें यही सोचना चाहिए कि यह कितना भी ढीठ क्यों न हो एक न एक दिन तो चला ही जाएगा।
उचित यही है कि हम दुःख के स्वागत के लिए जीवन में सदैव तैयार रहें। ऐसे समय में हमें यही सोचना चाहिए कि यह कितना भी ढीठ क्यों न हो एक न एक दिन तो चला ही जाएगा।
तुझको भी हँसना होगा
सूरज हँसता, चन्दा हँसता, हँसते सभी सितारे
हँसती नदियाँ, पर्वत हँसते, हँसते सागर सारे
पेड़ और पौधे हँसते हैं, पशु भी हँसते हैं
हँसते पक्षी, हँसती झीलें, हँसते पुष्प दुलारे
सब हँसते हैं किन्तु नहीं हँस पाता है मानव
रोते रोते बन जाता है वह मानव से दानव
अखिल प्रकृति हँस रही निरंतर, नाच और गुनगुना रही
लेकिन मानव के चेहरे पर भाव उभरते जैसे शव
इन भावों के पीछे बैठी रहती है अमिट उदासी
इसी उदासी के संग रहती परमप्रिया सी दासी
दासी कोई और नहीं है, यह है मनुज - हताशा
इसी हताशा की जननी है एक कामना प्यासी
एक कामना पूरी होती, दूजी शीश उठाती है
कामनाएं परिपूर्ण न होती, आगे बढ़ती जाती हैं
बचपन से आ जाता बुढ़ापा, कामनाओं के पीछे चलते
सदा अधूरी रहती हैं ये, अर्थी तक उठ जाती है
कामना सुखी न होने देती कभी किसी नर-नारी को
कामना खुश न होने देती प्रजा और अधिकारी को
कामना कभी न हँसने देती चाहे जितना करले प्रयास
किन्तु कामना देख के डरतीं संतोष भाव की आरी को
हे मानव-मन संतोष करो, कह दो कि स्वीकार किया
अब तक जो भी हमें मिला सचमुच प्रभु ने खूब दिया
मन तृप्त हुआ है संग्रह से, कोषों से, कोषागारों से
आवश्यकताएं पूर्ण हुईं, आवश्यकता से अधिक दिया
कहीं तो रुकना होगा तुझको, 'जय' कहीं ठहरना होगा
जीवन में संतोष बढ़ा कर, कहीं तो "बस" कहना होगा
धन्यवाद के स्वर उठने दो, तृप्ति की वंशी बज जाने दो
चराचरों के साथ ही मानव! तुझको भी हँसना होगा
Sunday, November 10, 2013
Saturday, November 9, 2013
Friday, November 8, 2013
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
'जय' हृदय करे स्वीकार प्रिये
आ गयी शरद ऋतु मतवाली
तुम करो नवल श्रृंगार प्रिये
सब चंचल नदियाँ धीर हुईं
जल धाराएँ कम नीर हुईं
धवल स्वच्छ है नीलगगन
ये बहती पवन शमसीर हुईं
तुम सुनो आज मनुहार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
है चाँदनी ओस से भरी हुयी
छज्जे पर चिड़ियाँ डरी हुयी
बालू पर तरणि चलाने की
अब बूढ़ी आशाएं हरी हुयी
तुम करो आज उपकार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
यौवन है शेष नहीं, तो क्या
है युवा उमंग तो डरना क्या
हम बिन पंखों के नभ छू लेंगे
पंखों के बल पर उड़ना क्या
तुम रचो नवल संसार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
अब सृजन नहीं, आभार प्रिये
कर्तव्य रहित अधिकार प्रिये
कुशल चिकित्सक बन करके
तुम करो स्पर्श-उपचार प्रिये
तुम गाओ आज मल्हार प्रिये
'जय' हृदय करे स्वीकार प्रिये
आ गयी शरद ऋतु मतवाली
तुम करो नवल श्रृंगार प्रिये
आ गयी शरद ऋतु मतवाली
तुम करो नवल श्रृंगार प्रिये
(चित्र : साभार गूगल )
Wednesday, November 6, 2013
तुम कहती हो ..
तुम कहती हो ..
तुम कहती हो तुम बदली हो
पर उड़ने से डरती हो,
तुम बदली तो नहीं
तुम कहती हो तुम धरती हो
पर भूचालों से डरती हो,
तुम धरती तो नहीं
तुम कहती हो तुम ही गुलाब हो
पर काँटों से डरती हो,
तुम गुलाब भी नहीं हुईं
तुम कहती हो कमल तुम्ही हो
पर कीचड से डरती हो,
कमल-पुष्प भी नहीं हुईं
तुम कहती हो तुम तितली हो
पर भँवरों से डरती हो,
तुम तितली तो नहीं
तुम कहती हो तुम बिजली हो
पर मेघों से डरती हो,
तुम बिजली तो नहीं
तुम कहती हो, तुम चन्दा हो
पर रातों से डरती हो,
तुम चन्दा तो नहीं
तुम कहती तो तुम सूरज हो
पर गर्मी से डरती हो,
तुम सूरज तो नहीं
तुम कहती हो तुम मदिरा हो
पर होंठों से डरती हो,
तुम मदिरा तो नहीं
तुम कहती हो तुम दरिया हो
पर बहने से डरती हो,
तुम दरिया तो नहीं
मैं सच कह दूँ कि तुम क्या हो ?
तुम देवी हो, तुम शक्ति हो, तुम सबला हो
तुम बेटी हो, तुम भगिनी हो, तुम माँ हो
तुम्ही प्रकृति हो, तुम्ही प्रेयसी, भार्या हो
तुम्ही सृष्टि की जन्मदात्री, तुम ही तो पालक हो
तुम ज्ञान, मान-सम्मान स्रोत हो, तुम ही संहारक हो
तुम से है सब कुछ ऐ नारी! तुम ही से 'जय' है
तुम हँसो तो दिनकर उठ जाए, रो दो तो आयी प्रलय है
तुम कहती हो ....
-0-0-0-
चित्र : साभार गूगल
Subscribe to:
Posts (Atom)