Wednesday, October 26, 2011

एक चित्र हम सभी के पड़ोस का /
मित्रों, आओ इस दिवाली में एक दीपक इस घर के नाम पर भी जलाएं / यदि संभव हो तो इस घर को भी खुशियों की परिधि में कर लें /

ये कैसी दिवाली है !

कुछ शीत बसन्ती है, कुछ ताप भी मद्धिम है /
हर ओर उमंगें हैं और प्यार का संगम है /
इन सब के बीच बैठा एक निरंकार प्राणी /
हो उपवन जिसका उजड़ा, वो ऐसा माली है //
ये कैसी दिवाली है !

सूर्योदय से सूर्यास्त हुआ, वह थक कर के आया /
घर में भूखे बच्चे और रोगी पत्नी को पाया /
मुट्ठी में बंधे रूपये औषधि में हुए सब व्यय
मन उसका रुदन करता दिल खाली खाली है //
ये कैसी दिवाली है !

घर में है नहीं आटा, चावल भी अशेष हुए /
घुन वाले गेंहूं भी, अब आज विशेष हुए /
मिट्टी की टूटी हांडी में कुछ पकने वाला है
ना घर में कटोरा है ना चम्मच थाली है //
ये कैसी दिवाली है !

लाचारी और गरीबी को, ये बच्चे क्या समझेंगे /
कुछ देर ये हठ करके, ठुनकेंगे और रो देंगे /
हे देव! प्रभो! इस घर पे, 'जय' अबकी कृपा कर दो
इस घर में कभी क्या लक्ष्मी जी आने वाली है //
ये कैसी दिवाली है !