Tuesday, June 15, 2010

क्यों डरते हो

जब हो प्रतिभा परिपूर्ण, पलायन क्यों करते हो ?
जीवन में संघर्ष सतत हों, पर क्यों डरते हो ??

क्षुधापूर्ति के लिए तुम्हे, कुछ अन्न जुटाना होगा /
तनावरण के लिए स्वयं ही, वस्त्र जुटाना होगा //
अन्न वस्त्र के साथ साथ , हे शिथिलमनः प्राणी !
शीत ताप से बचने को , एक भवन बनाना होगा //
जीवन की आवश्यकताओं से, तुम क्यों डरते हो ?
जब हो प्रतिभा परिपूर्ण, पलायन क्यों करते हो ?

तुम रुको नहीं, बढ़ चलो, सतत बढ़ते ही जाओ /
सिन्धु, शैल, सरिता पथ में हों, चढ़ते ही जाओ //
मत तोड़ो डोर प्रयासों की, जब हो जाओ असफल ,
सावधान हो, नयी विधा से, पुनः कार्य करते जाओ //
तुम अकर्मण्य मन बनो, स्वेद से क्यों डरते हो ?
जब हो प्रतिभा परिपूर्ण, पलायन क्यों करते हो ?

निज बाहों को फैला दो, तुमको क्षितिज मिलेगा /
पग दो पग तो चलो, तुम्हे भी लक्ष्य मिलेगा //
अरे ! पुष्प की चाहना करने वाले मानव ,
आज पौध तुम रोपो, कल को पुष्प खिलेगा //
अंक पाश में भरो सफलता, 'जय' क्यों डरते हो ?
जब हो प्रतिभा परिपूर्ण, पलायन क्यों करते हो ?
जीवन में संघर्ष सतत हों, तुम क्यों डरते हो ??

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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