Wednesday, May 19, 2010

खुदारा ! अब नचा हूँ मैं ......

तुम्हारी आँख के आँसू मुझे अच्छे नहीं लगते
दिवानों की तरह बहते मुझे सच्चे नहीं लगते
जो कहना हो तुम्हे ,खुलकर वो बातें आज कह भी दो
सताने के लिये ही क्या तुम्हे बच्चे हमीं दिखते

हमारे घर में आयी है तुम्हारे राह की खुशबू
तभी से है झगडती यह मेरी धड़कन खुद ही हमसू
ये कहती है चलूँ बाहर जाकर के तुम्हे लाऊँ
ये नाहक हो रही पागल तुम्हे आना इधर ही कू

हमारे गीत की पंक्ति कभी तो गुनगुनाओगे
मेरा वादा है तुम पढ़कर स्वयं ही मुस्कुराओगे
रहोगे दूर तुम कितना अभी यह देखना बाकी
हृदय यह कहता है मुझसे मुझे तुम अब बुलाओगे

मेरी आँखों में जो सपने हैं उनका क्या करेंगे हम
तुम्हारे दिल की राहों में भला कैसे चलेंगे हम
जहां पर एक दरवाजा था मेरे आने जाने का
वहीं पर तो दिवारे हैं नहीं अब मिल सकेंगे हम

मेरी साँसों में डालो जी ज़रा सी अपनी साँसे भी
बहुत दिन के चले हैं हम अभी भूखे हैं प्यासे भी
तुम्हारी चन्द साँसे ही मुझे जीवन नया देंगीं
यही तो मीठी मिश्री हैं , मावा हैं , बताशे हैं

मुझे तो मार डालेगा तुम्हारी आँख का जादू
तुम्हे देखूँ तो बेचैनी बढे, बढ़कर हो बेकाबू
मैं टोंकू लाख धड़कन को मगर बनती सुनामी यह
संभालो मुझको यारो तुम कोई भैया , अरे बाबू

हमारे दिल में रहती हैं तुम्हारी ही घनी यादें
मुझे सब याद हैं अबतक तुम्हारी वो कही बातें
ज़रा मायूस हूँ लेकिन नहीं जीवन से मैं हारा
तुम्हे ही ढूंढती रहती ज़माने में मेरी आँखें

ये सोचा था ज़माने की निगाहों से बचा लूं मैं
तुम्हे नज़दीक पाकर मैं ज़माने से छिपा लूं मैं
ये मेरा था वहम खालिस कि ' जय ' तुम भोले भाले हो
ज़माने को नचाया है , खुदारा ! अब नचा हूँ मैं

2 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर रचना है!

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  2. अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
    मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
    tareef ke liye...

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